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All to Know About Ganga Dussehra



Ganga is seen as a heavenly stream in India as well as among the most hallowed waterways over the world. This truth is all inclusive and is accepted by all Indians and furthermore by popular researchers of the world. Stream. It is worshiped like a Goddess and it is trusted that it was the tenth day of Jyeshta splendid half when she was slipped on earth from paradise. The day is praised as Ganga Dussehra. On this day, after a considerable measure of diligent work and retribution of Bhagirath, a Suryavanshi ruler, inspired accomplishment to cut down the stream to earth. From that point forward, each year the event of Ganga Dussehra is praised by playing out a few rituals and ceremonies of Ganga pooja to honor her.

The Significance of Ganga Dussehra (गंगा दशहरा का महत्व)
At the point when waterway Ganga incarnated on earth that event was obliged with uncommon ten vedic astrologic counts. Jyeshtha month, Shukla Paksha (splendid half), Tenth date, Wednesday, Hasta Nakshatra, Vyatipata yoga, Gar Anand Yog and Moon in Virgo and Sun in Tauras, these every one of the ten Yogas ingest all the ten sins by just clean up in waterway Ganga on Ganga Dussehra. 

Those every one of the ten sins in which among three are natural, four verbal and other three are mental are announced. Natural means sins directed by superb body and these are, 1. Bring anything from others persuasively, 2. Brutality, 3. Contact with other lady. Among four sorts of verbal sins are, 1. Talk unforgiving words, 2. Tell a lie, 3. Whine for others and 4. Insignificant drifting are incorporated. To possess others' advantages, craving to mischief others and discourses on immaterial themes are considered as the top most mental sins. Beyond what many would consider possible one ought to abstain from including in every one of these exercises as these are considered as the greatest sins in our mythology yet at the same time if happen erroneously then can decimate by simply take a blessed plunge and perform pooja in Ganga on Ganga Dussehra.

Ganga Dussehra Rituals (गंगा दशहरा अनुष्ठान)
On the off chance that it is impractical to scrub down in Ganga on Ganga Dussehra ask at some other waterway or store or with immaculate water at home according to the accommodation. After that ought to do presentation pooja before symbol of Ganga. The symbol of Ganga is considered as Trinetr, quadrilateral, decorated with white garments and white lotus. Ruler Bhagirath and Himalaya ought to likewise be loved which is profoundly prescribed amid Ganga pooja. Ruler Shiva is the prime god to be love amid the Ganga Pooja as he is sole proprietor and holder of waterway Ganga and by beauty of his benevolence just sent the stream on earth for the welfare of humankind. The gift of ten palatable things for the most part foods grown from the ground sesame seeds are viewed as generally promising.

Ganga Dussehra Vrat Katha (गंगा दशहरा व्रत कथा)
एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर 'चोर-चोर' चिल्लाने लगी।

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने 'गंगा' की मांग की।


इस पर ब्रह्मा ने कहा- 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।' महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।